भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तड़पा के रख दिया है दिले-बेक़रार ने / मनु भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तड़पा के रख दिया है दिले-बेक़रार ने
मुझको तो मार डाला तेरे इंतज़ार ने

शाख़ों पे फूल खिल न सके ख़ार बन गए
क्यूँ देर कर दी आने में फस्ले-बहार ने

मुझको तो इससे पहले कोई जानता न था
मशहूर कर दिया है मुझे तेरे प्यार ने

मालूम नहीं कब मेरी दुनिया लुटी, मुझे
हाँ इतना याद है कि मुझे लूटा यार ने

वो हाल मेरा पूछने आये थे मेरे घर
अफसाना कह दिया मेरे उजड़े दयार ने

वो किसपे ऐतबार करे ऐ 'मनु' बता
जिसको तबाह कर दिया हो ऐतबार ने