भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तितलियों का सिंगार कौन करे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तितलियों का सिंगार कौन करे
अब खिज़ा को बहार कौन करे
रोज़ बुनती है चाँद पर बैठी
चाँदनी तार तार कौन करे
रोज़ वादे से मुकर जाता है
बेवफ़ा से क़रार कौन करे
छुप के बैठा जो झील में जाकर
वो सितारा शुमार कौन करे
जो तसव्वुर में बस रहा मेरे
उस से अब जीत हार कौन करे
तू नहीं जिन्दगी में शामिल तो
अब मुझे बेक़रार कौन करे
रुख़्सती का है महूरत आया
अब भला इंतज़ार कौन करे