भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझसे मायूस तो हो जाऊँ कहाँ जाऊँ मैं / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझसे मायूस तो हो जाऊँ कहाँ जाऊँ मैं ।
ज़िन्दगी आ मुझे बहला तुझे बहलाऊँ मैं ।।

आ कभी सीख कभी मुझको सिखा तर्ज़े-वफ़ा
कभी थामूँ कभी उँगली तुझे पकडाऊँ मैं ।

कभी ठुकराउँ खिलौने का तक़ाज़ा तेरा
और कभी तेरे लिए चाँद उठा लाऊँ मैं ।

छेडख़ानी से कभी बाज़ न आए कोई
तुझसे हँसना कभी सीखूँ कभी सिखलाऊँ मैं ।

तू है एक जोत मुझे राह दिखानेवाली
तू कोई ज़ख़्म नहीं क्यूँ तुझे सहलाऊँ मैं ।

आ मेरे पास चली आ कोई परहेज़ न कर
तुझसे मिलकर कभी तड़पूँ कभी तड़पाऊँ मैं ।

तेरे चेहरे से तबस्सुम की शुआएँ लेकर
सोज़ एक फूल की ख़ुशबू सा बिखर जाऊं मैं ।।