तुमसे मिलने की आस बाकी है
पास दरिया है प्यास बाकी है
वो तो मिलता है अपने तेवर में
मुझमें अब भी मिठास बाकी है
मिल चुके हैं सभी से महफिल में
एक ही शख़्स ख़ास बाकी है
अपने हिस्से की जिदंगी जी ली
उसके गम की असास बाकी है
जिस्म के जख़्म सारे दिखते हैं
रूह पर इक लिबास बाकी है
असास = सामान