भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम से शिकायत क्या करूँ / बेहज़ाद लखनवी
Kavita Kosh से
होता जो कोई दूसरा
करता गिला मैं दर्द का
तुम तो हो दिल का मुद्दआ'
तुम से शिकायत क्या करूँ
देखो है बुलबुल नाला-ज़न
कहती है अहवाल-ए-चमन
मैं चुप हूँ गो हूँ पुर-मेहन
तुम से शिकायत क्या करूँ
माना कि मैं बेहोश हूँ
पर होश है पुर-जोश हूँ
ये सोच कर ख़ामोश हूँ
तुम से शिकायत क्या करूँ
तुम से तो उल्फ़त है मुझे
तुम से तो राहत है मुझे
तुम से तो मोहब्बत है मुझे
तुम से शिकायत क्या करूँ