तोरा की पता / रामदेव भावुक
एकता ऑ अखण्डता के भरल सावन
कैतिकी गंगा के पानी जैसन घटि रहल छ’
विषमता के कटाव मे देश अप्पन
दियारा के जमीन जैसन कटि रहल छ’
देश के प्रगति रोकि कए देश के दुश्मन
आइ दिन के राति बनैने छ’
आजादी निगलै लए विदेशी सुरसा
सीमा पर घात लगैने छ’
पूस मे रेल के पटरी जैसन
लोग अप्पन कर्त्तव्य से हटि रहल छ’
कुर्सी के लोभ मे लोग सिह जैसन
राजनैतिक दलदल मे फँसि गेल छ’
प्रगति-पथ पर बढ़ैत राष्ट्रीयता के पैर
स्वार्थ के जमीन मे बँसि गेल छ’
कोशी के भैंसा जोंक जैसन दानवता
आइ मानवता के देह मे सटि रहल छ’
राजनीति सें ऊपर उठि कए, देश के
ऊपर उठाबै के सपना तेॅ कुमारे छ’
सुरुज उठि कए माथ पर आप गेल’
मगर उल्लू कहब करै छै कि अन्हारे छ’
भाषा, धरम आउर क्षेत्र के नाम पर
भारत महाभारत के खेमा में बँटि रहल छै
तू आइ जै मे आगि लगा रहल छे’
तोरा की पता जे केतना महंगा छ’
विधवा माय के सिन्दूर, पत्नी के चूड़ी
तोहरे कुमारी बहिन के लहंगा छ’
अप्पन घ’र के अपने जरबै छै
ई बात दिमाग मे किये ने अँटि रहल छै’
आइ प्रतिज्ञा करॅ कि हम धरती के फूल
आकाश के तारा जैसन मिलि के रहब
नदी जैसन राष्ट्र-सागर मे मिलै ले’
हम सब एक साथ मिलि के बहब
शांति के प्रकाश सें क्रान्ति के बादल
माघ के कुहेस जैसन फटि रहल छ’