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दिल के बहलाने को सामाँ चाहिए / 'महताब' हैदर नक़वी

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दिल के बहलाने को सामाँ चाहिए
मेरी वहशत को बयाबाँ चाहिए
 
हिजरतें होनी थीं जितनी हो चुकीं
पाव में ज़न्जीर-ए-जानाँ चाहिए
 
ख़्वाब तो देखें आँखों हैं ने बहुत
पर कोई इनका निगहबाँ चाहिए
 
अपने वीराने में दम घुटने लगा
कोई सूरत कोई इमकाँ चाहिए

कारोबार-ए-इश्क़ है मुश्किल बहुत
मुझ को कोई आसाँ चाहिए