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दुख लगै छै पर्वत रं / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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दुख लगै छै पर्वत रं
साँस-साँस पर आफत रं।

कपड़ा आरेा कुल दोनो केॅ
जोगी राखोॅ इज्जत रं।

हुनकोॅ साथ तेॅ हेनोॅ मीट्ठोॅ
खाली मधु के शर्बत रं।

हम्मीं सुधरी जाँव तेॅ अच्छा
लोग दिखै सब बेमत रं।

सारस्वतोॅ के गजल लगै छै
दर्द पीर मेॅ राहत रं।