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दुनियाँ की ख़्वाहिशों के तलबगार की तरह / सिया सचदेव

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दुनियाँ की ख़्वाहिशों के तलबगार की तरह
क्यूँ चल रहे हो वक़्त की रफ़्तार की तरह

आमाल जिसके थे सभी ग़द्दार की तरह
समझा उसी को मैंने वफ़ादार की तरह

इख़लाक़ ओ सादगी भी मुसीबत है दोस्तों
हर शख़्स देखता है तलबग़ार की तरह

ये क्या हुआ की आज वहीं बिकने आ गया
कल तक तो लग रहा था ख़रीदार की तरह

सच बोलने के ज़ुर्म की इतनी बड़ी सज़ा
हर शख़्स देखता है गुनाहगार की तरह

हर आदमी का मोल लगाता है आदमी
दुनिया ये हो गयी किसी बाज़ार की तरह

मुद्दत के बाद लौट के आये है वो सिया
लगने लगी हूँ मैं उन्हें बीमार की तरह