भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूर होने की इल्तिज़ा न करो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दूर होने की इल्तिज़ा न करो
बात तुम हिज्र की किया न करो
हर किसी का नसीब होता है
देख औरों को यूँ जला न करो
रात होगी तो ख्वाब आयेंगें
इतने बेचैन भी हुआ न करो
ग़र खिज़ा है बहार भी होगी
इसके रुक जाने की दुआ न करो
आग जलती है जला डालेगी
बेवजह तुम इसे छुआ न करो
जो हमेशा वफ़ा निभाते हैं
साथ उन के कभी दग़ा न करो
तेरी खुशियों में सब रहें शामिल
जख़्म ग़ैरों को भी दिया न करो
दिल कभी रेत सा नहीं होता
नाम लिखकर मिटा दिया न करो
प्यार दोगे तो प्यार पाओगे
नफरतें प्यार का सिला न करो