देह मन्दाकिनी निर्मला हो गयी।
आज एकादशी निर्जला हो गयी॥
दूध-सी रोशनी है बरसने लगी
चाँदनी चन्द्रमा की कला हो गयी॥
छिप रही थी अँधेरों के आगोश में
कामना चाँद की उज्ज्वला हो गयी॥
खिल गयी रातरानी घने कुंज में
महमहाई पवन चंचला हो गयी॥
श्याम की देह से है लिपटने लगी
बाँसुरी भी ये अब तो बला हो गयी॥
चाहतीं चूमना पाँव घनश्याम के
जुड़ रही है लहर शृंखला हो गयी॥
छू लिया प्रीति कर से जिसे श्याम ने
राधिका साँवरी निश्छला हो गयी॥