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दोस्तों अब तुम न देखोग ये दिन / 'कैफ़' भोपाली

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दोस्तों अब तुम न देखोग ये दिन
ख़त्म हैं हम पर सितम-आराइयाँ

चुन लिया एक एक काँटा राह का
है मुबारक ये बरहना पाइयाँ

कू-ब-कू मेरे जुनूँ की अज़्मतें
उस की महफ़िल में मेरी रूस्वाइयाँ

अज़्मत-ए-सुक़रात-ओ-ईसा की क़सम
दार के साए में हैं दाराइयाँ

चारा-गर मरहम भरेगा तू कहाँ
रूह तक हैं ज़ख़्म की गहराइयाँ

‘कैफ़’ को दाग़-ए-ज़िगर बख़्शे गए
अल्लाह अल्लाह ये करम फ़रमाईयां