जो आज बैठे हैं
घरों की सांकल लगाकर
नहीं जानते
सातों समुद्रों में
कहीं नहीं है आज
ख़ामोश तरंगें
जिन्होंने सुनी नहीं
वे आवाज़ें
जो उत्तर से, पूरब से
दक्षिण और पश्चिम से
चली आईं
उन्हें बुलाते
वे बेशक जितना भी सिमटें
जितना भी भागें
बच नहीं पाएंगे
समय के पंजों से
धरती आज फिर
अलाव पर है!