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नख सिख - 3 / प्रेमघन

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पीन पयोधर शम्भु नहीं कल,
काम कमान भ्रुवैं छबि छाजत।
है विपरीत जु नासिका कीर,
लखे अलकावलि जालन भाजत॥
देखिये तो घनप्रेम दोऊ दृग,
आनन पैं कहिबे की न हाजत।
है जहँ पूरन इन्दु प्रकास,
विकास तहीं अरविन्द विराजत॥