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नज़र को तेरी जुस्तजू चाहिए है / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
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नज़र को तेरी जुस्तजू चाहिए है
नहीं और कुछ आरज़ू चाहिए है
समंदर जज़ीरे फलक चाँद सूरज
तुम्हारी महक कू- ब- कू चाहिए है
मुझे इश्क़ करने को सूरत कोई सी
तुम्हारी तरह हू- ब- हू चाहिए है
दुआ ही नहीं कुछ असर भी मिले अब
मरीज़े- मुहब्बत को तू चाहिए है