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नदी के पार के गाँव / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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झींगवा मछरी के पीठ पर
पबंरत नदी में
नहात रहे कुछ लोग

कुछ लोग जात रहे
काटे खातिर गेंहूवन के बाली
आपन कपार ककुलाब
पेड़न का अलोते

देखत रहे खेला
कुछ लोग
सूरूज के उगे
दिन चढ़े
आ झुरमुटन में लुकाये के छन
कान्ही पर लदले उम्मीदन के आसमान

पूरा गाँवें तना आइल रहे
ओकरा भीतर
जे खोज रहत रहे
नदी के रोज बदलत हेलान

कोर का ओरे
पुकार भरत रहे ऊ बूढ़वा
आँखिन से ना लउकत रहे
ओके कुछऊ

कुछ लोग चलल जात रहे डेगारे
जेने कुहेसा में लपेटात
उबियात रहे ओकर गाँव