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नमकपाशी पे आमादा अगर हमदम नहीं होते / कांतिमोहन 'सोज़'

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नमकपाशी पे आमादा अगर हमदम नहीं होते ।
यक़ीनन ज़िन्दगी के हादिसे कुछ कम नहीं होते ।।

गिला होता जनूं होता कफ़न पर अपने खूं होता
मगर ये आँख के खंदक कभी पुरनम नहीं होते ।

ग़रूरे-चर्ख़ को खंदाज़नी का अब न मौक़ा दो
हिरासां होते हैं अहले-ज़मीं हरदम नहीं होते ।

जुदा कर अपने कांधों से हथेली पर ये सर रख लो
इरादे आशिक़ों के आजकल मुब्हम नहीं होते ।

सुना है मौत के सौदागरों को है खलिश इसकी
रबाबे-आशिक़ी के सुर कभी मध्धम नहीं होते ।

20-1-1988