हा दिन की तरह 
आज भी निकला सूरज 
घु...उ....उ.....उ...प .. प.. अंधेरी रात का शामियाना तोड़कर |
अभी कल ही तो डूबा था यह 
अभी निराश शाम के क्षितिज में 
लहू-लुहान होकर !
हर दिन की तरह 
आज भी बिखरी उजास 
उम्मीदों की 
दिग्-दिगन्त 
आसमान की चादर पर!
हर दिन की तरह 
आज भी घूमी धरा
अविराम 
आत्म-विभोर होकर 
दायित्वों से दबी धुरी पर !
हर दिन की तरह 
आज भी किए तमाम जतन 
जीवों ने 
जीने के-
ठेले वाले ने लगायी ठेली, 
फेरी वाले ने लगायी फेरि, 
चिड़ियों ने चुगे दाने, 
चिटियों ने चाटा गुड 
बंदरों ने की छीना-झपटी, 
तो कुछेक इंसानों ने भी की लूटपाट, 
लगाये विश्वासों की भीत में घात, 
तोड़े कपाट आत्मा के, 
लूटे गर्भगृह मंदिरों के भी 
उधर अनाथ बच्चे भी करते रहे 
भरसक प्रयास 
ढूँढने की जीवन-आस 
कूड़े के ढेरों से!
हर दिन की तरह 
आज भी ताड़ी पीयी बेबड़े ने
और गाये गलियों में 
जीवन के कर्कश गान 
उत्साह और आक्रोश की अदम्य भाषा में!
आज भी जूझे मरीज 
जिंदगी की खातिर मौत से 
अपनी-अपनी नाक पर ऑक्सीज़न मास्क चढ़ाये!
आज भी लगे सड़कों पर जाम 
‘पी....उ...उ...उ पीं ...उ...उ....’ चिल्लाये वाहन 
पैरों में रफ्तार के संकल्प थामे। 
आज भी भिखारी ने मांगे पैसे 
उम्मीदों का कटोरा फैलाकर 
आज भी जी गये बेरोजगार किसी तरह 
किसी एक बेहतर कल की आस में 
आज भी गरमाई ठिठुरन 
बुझते अलावों की मंदी आंच पर...
वैसे तो आज भी 
सब कुछ 
ठीक वैसे ही हुआ 
हर दिन की तरह 
लिकिन हाँ, आज हरेक शख्स 
‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोलकर निकला!
आज मुझे दिखे 
अनगिन मस्कानों में 
उम्मीदों के अंकुर 
सिर उठाते हुए 
कल मैं देखुंगा अवश्य 
इन्हीं अंकुरों से 
जीवन की फसलें 
लहलहाती हुई!