साहित्य-प्रेमियों को
मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
मैं कुछ चीज़ों के नाम बदलने जा रहा हूँ।
मेरी मान्यता यह है :
कवि अपने क़ौल का सच्चा नहीं
अगर वह चीज़ों के नाम नहीं बदलता।
क्या कारण है कि सूरज को
हमेशा सूरज ही कहा जाता रहा है ?
मैं कहता हूँ कि उसे
एक डग में चालीस कोस नापते जूतों वाली
बिल्ली कहा जाय।
मेरे जूते ताबूतों जैसे लगते हैं ?
तो जान लीजिए कि आज के बाद
जूतों को ताबूत कहा जायेगा।
बता दीजिए, सूचित कर दीजिए,
प्रकाशित कर दीजिए इसे -
कि जूतों का नाम बदल दिया गया है :
अब से उन्हें ताबूत कहा जायेगा।
ख़ैर, रात तो ख़ासी लम्बी है।
अपना सम्मान करने वाले हर मूर्ख के पास
उसका एक अपना शब्द-कोश तो होना ही चाहिए
और इससे पहले कि मैं भूल जाऊँ
ईश्वर को भी तो अपना नाम बदलवाना पड़ेगा
हर कोई उसे जो नाम देना चाहे दे दे
यह एक निजी समस्या है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ