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नाम की तख़्ती / ब्रजेश कृष्ण
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इस घर की
खिड़की से रोज़ उतरती हैं
मेज़ पर चीटियाँ
जैसे पहाड़ से उतरते हैं लकड़हारे
इस घर के
आले में रहती है
चिड़िया और उसके दो बच्चे
वे जगाते हैं हमें काम पर जाने के लिए
इस घर में
अख़बारों की पेटी में
नियम से सोती है बिल्ली
अँधेरे के खि़लाफ़ लड़ती हुई
चौकस और चौकन्नी
इस घर में
इन सबके साथ रहते हुए
क्या यह अधूरा और बेतुका नहीं है
कि दरवाजे़ पर हो
अकेले मेरे नाम की तख़्ती।