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नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पे
पीट रही हैं मुझे जमकर, दिखलाएँ अपनी ताकत वे
कभी नेता लगते फोड़ों से, तो कभी फोड़े लगते नेता से
ये कैसा दोहरा राज देश में? न छोड़ें अपनी आदत वे
तो फूलों से सहलाएँ वे, तो मारें खुलकर साध निशाना
कभी कोड़े मारें, कभी गदा घुमाएँ, चाहते हैं शहादत वे
तो मीठी रोटी से बहलाएँ, तो रंग मौत के दिखलाएँ
कभी पुचकारें, कभी दुत्कारें, देखो, लाए हैं कयामत वे
रचनाकाल : 4 मई 1937