भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नित्य मधुर ब्रज-धाम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नित्य मधुर ब्रज-धाम, खेल रहे हरि-सँग होरी॥
विषय बिराग-राग-रँग लीन्हो, प्रेमसुधा-रस घोरी।
एक लक्ष्य करि मोहन-‌आनन भरि पिचकारी छोरी॥
बदन सब अरुन भयो री॥
दंभ-दर्प-मद-मोह-कोह सब राख भ‌ए जरि होरी।
काम विसुद्ध भयो, हरि-मुख पै राजि रह्यो बनि रोरी॥
मिटी जग की सब खोरी॥
नाते-नेह खेह भये सारे, नातो एक रह्यौ री।
नेह-बिन्दु सब नेह-जलधि मिलि सागर रूप लह्यौ री॥
प्रेम-रस-रंग छयौ री॥