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नींद / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हें गुस्सा आता है
तुम चीखते-चिल्लाते हो गालियाँ देते हो
क्योंकि तुम मेरे सच को बर्दाश्त नहीं कर सकते
थोथी बहस करते हो दफ्तर में घर में
तुम्हारा आक्रोश
दीवारों से टकराकर लौट आता है बेमतलब बेनतीजा
जहाँ बोलना चाहिए वहाँ नहीं बोलते तुम
जहाँ ज़रूरत नहीं वहाँ बहुत मुँह खोलते तुम
और आजकल तो नींद में भी बड़बड़ाते हो
नींद में हो तो ज़रा सो लो
देश के भविष्य और तुम्हारी सेहत के लिए
अच्छी नींद का होना भी बहुत ज़रूरी है