न क्या सुधि आयी वृन्दावन की
भूल गए कैसे मनमोहन! लीलायें बचपन की!
याद न आयी अबुध किशोरी
बरसाने की राधा गोरी!
प्रिय गोपियाँ प्रेम रस बोरी
चोरी दधि माखन की
भूले यमुना तीर सुहाना!
वन-कुंजों में रास रचाना!
याद न आयी सच बतलाना
कभी वेणु-वादन की!
विफल आस में पुनर्मिलन की
आयु कटी व्रजवासी-गण की
पर तुमने पीड़ा निज मन की
कैसे भला सहन की!
न क्या सुधि आयी वृन्दावन की
भूल गए कैसे मनमोहन! लीलायें बचपन की!