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गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
गीत-वृन्दावन
रचनाकार | गुलाब खंडेलवाल |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | गीत |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- यों तो कालिंदी है काली / गुलाब खंडेलवाल
- मेघ तो फिर-फिर ये छायेंगे / गुलाब खंडेलवाल
- युगल छवि देखे ही बनती है / गुलाब खंडेलवाल
- निर्जन यमुना-तट से / गुलाब खंडेलवाल
- तृण की ओट छिपे गिरधारी / गुलाब खंडेलवाल
- इसी कदम्ब तले / गुलाब खंडेलवाल
- लौटकर हरि वृन्दावन आते! / गुलाब खंडेलवाल
- न क्या सुधि आयी वृन्दावन की / गुलाब खंडेलवाल
- तुमने अच्छी प्रीति निभायी! / गुलाब खंडेलवाल
- सुना जब हरि हैं जाने वाले / गुलाब खंडेलवाल
- न कोयल कूके वृन्दावन में / गुलाब खंडेलवाल
- फिर घनश्याम गगन में छाये / गुलाब खंडेलवाल
- राधा मुरली कर में लेती / गुलाब खंडेलवाल
- राधा हरि को देख न पाती / गुलाब खंडेलवाल
- सुना, ब्रज में फिर श्याम पधारे / गुलाब खंडेलवाल
- राधिका दौड़ द्वार तक आई / गुलाब खंडेलवाल
- रात यदि श्याम नहीं आये थे / गुलाब खंडेलवाल
- पत्री कैसे लिखूँ, कन्हाई! / गुलाब खंडेलवाल
- लोग थे फूले नहीं समाये / गुलाब खंडेलवाल
- चलो मधुवन में चलकर नाचें / गुलाब खंडेलवाल
- ‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’ / गुलाब खंडेलवाल
- द्वारिका में जब कोयल बोली / गुलाब खंडेलवाल
- दूत ने माँ के वचन सुनाये / गुलाब खंडेलवाल
- कौन बाबा की व्यथा बताये! / गुलाब खंडेलवाल
- स्वप्न में राधा पडी दिखाई / गुलाब खंडेलवाल
- 'मुरली राधा ने भिजवाई' / गुलाब खंडेलवाल
- मुरली कैसे अधर धरूँ! / गुलाब खंडेलवाल
- कहा हरि ने 'ब्रज-रज है प्यारी / गुलाब खंडेलवाल
- कोई राधा से कह देता / गुलाब खंडेलवाल
- रुक्मिणी बोली, -- 'पत्रा लाओ / गुलाब खंडेलवाल
- रुक्मिणी हारी जब समझा के / गुलाब खंडेलवाल
- 'रहिये चल कर वृन्दावन में / गुलाब खंडेलवाल
- भीड़ में राधा पड़ी दिखाई / गुलाब खंडेलवाल
- 'कितनी बदल गयी तू राधे! / गुलाब खंडेलवाल
- 'राधे! कुछ तो मुँह से कहती! / गुलाब खंडेलवाल
- 'कहीं ये सपना टूट न जाये! / गुलाब खंडेलवाल
- 'सूखा सावन,पूनो काली / गुलाब खंडेलवाल
- 'राधे! कैसे भूली जायें / गुलाब खंडेलवाल
- 'मन के तार तुझी से बाँधे / गुलाब खंडेलवाल
- 'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था / गुलाब खंडेलवाल
- द्वारिका में, प्रभु! सुख से सोते / गुलाब खंडेलवाल
- कौन कहता है, हम बिछुड़े हैं / गुलाब खंडेलवाल
- नाथ! क्या राधेश्याम कहाये! / गुलाब खंडेलवाल
- मैंने नारी-तन क्यों पाया! / गुलाब खंडेलवाल
- अब तो छोड़ नहीं जायेंगे! / गुलाब खंडेलवाल
- 'करूँ क्या, नहीं समझ में आता / गुलाब खंडेलवाल
- हाय! अब तो आशा भी खोयी / गुलाब खंडेलवाल
- लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ / गुलाब खंडेलवाल
- याद किस-किसकी उस क्षण आयी! / गुलाब खंडेलवाल