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दूत ने माँ के वचन सुनाये / गुलाब खंडेलवाल
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दूत ने माँ के वचन सुनाये
कहना मोहन से--'मिल जा अब जाने के दिन आये
'सूना है व्रजमंडल तेरा
भवन बना भूतों का डेरा
पति को तेरे दुःख ने घेरा
रहते शीश झुकाए
'तेरी कीर्ति-कथायें सुनकर
पुलक-पुलक उठता है अंतर
माँ का जी कैसे माने पर
उर से बिना लगाये !
'तन रह गया सूख कर आधा
मलिन-वेश रोती है राधा
बेटे! यों किसने मन बाँधा
हम सब हुए पराये !'
दूत ने माँ के वचन सुनाये
कहना मोहन से--'मिल जा अब जाने के दिन आये