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'सूखा सावन,पूनो काली / गुलाब खंडेलवाल

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सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली

पिक ने देशनिकाला पाया
मोरों ने है नृत्य भुलाया
मधु ऋतु में भी फूल न आया
नंगी रहती डाली

'दधि के मटके तोड़ गिरातीं
अब न गोपियाँ मथुरा जातीं
नित उठ देवी-देव मनातीं--
लौटे घर वनमाली

'नाथ! आप यदि व्रज में आयें
दशा वहाँ की देख न पायें
हुई सूख काँटा वे गायें
जो निज कर से पालीं'

सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली

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