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यों तो कालिंदी है काली / गुलाब खंडेलवाल

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यों तो कालिंदी है काली
किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली

जब भी हम ये नयन उघाड़ें
दिखती हों काँटों की झाड़ें
किन्तु उन्हीं में तिरछे आड़े मिले कभी वनमाली

ले आई अबीर की झोली
राधा कभी खेलने होली
नाची ग्वाल बाल की टोली बजा-बजा कर ताली

माना कालिय भी दह में है
प्राण सदा रहते सहमे हैं पर
मन के कुल राग थमे हैं सुन कर धुन मतवाली

यों तो कालिंदी है काली
किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली