भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’ / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।


‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’
बोला एक गोप वृन्दावन में जा-जाकर घर-घर

किसका मान! आन अब कैसी
अब तो दशा हुई है वैसी
जल में थी गजेन्द्र की जैसी
आये प्राण अधर पर

चलो सभी आगे कर गायें
नन्द-यशोदा दायें-बायें
राधा को भी आज मनायें
निकले घर के बाहर

‘चलो, सब चले द्वारिका मिलकर’
बोला एक गोप वृन्दावन में जा-जाकर घर-घर

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।