Last modified on 29 अगस्त 2012, at 18:54

हाय! अब तो आशा भी खोयी / गुलाब खंडेलवाल


हाय! अब तो आशा भी खोयी
टूटी क्षीण डोर जिसमें सपनों की लड़ी पिरोई

साथ चले हरि जब ऊधो के
आशा प्राण रही थी रोके
बुझी आज, मैंने रो-धो के
लौ जो सदा सँजोयी

पल भर को अवगुंठन सरका
विरह ले लिया जीवन भर का
मौन हो गया सुर अंतर का
तान सदा को सोयी

कभी श्याम के मन को भाई
माना, भाग्य बड़ा मैं लायी
पर क्या मुझ-सी गयी सताई
कभी विश्व में कोई!

हाय! अब तो आशा भी खोयी
टूटी क्षीण डोर जिसमें सपनों की लड़ी पिरोई