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सुना जब हरि हैं जाने वाले / गुलाब खंडेलवाल

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सुना जब हरि हैं जानेवाले
मथुरावासी खड़े हो गए पथ में घेरा डाले

नयनों से थे अश्रु उमड़ते
आ-आकर रथ सम्मुख अड़ते
तिल भर नहीं अश्व थे बढ़ते साँचे के-से ढाले

समझ भाग्य फिर ब्रज के जागे
व्रजवासी लेने को भागे
राधा नंदभवन के आगे पहुँची सब सखियाँ ले

मथुरा-वृन्दावन से कट कर
पर हरि गए द्वारिका-पथ पर
दोनों के दुःख हुए बराबर किसको कौन सँभाले !

सुना जब हरि हैं जानेवाले
मथुरावासी खड़े हो गए पथ में घेरा डाले