भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
'मुरली राधा ने भिजवाई' / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
'मुरली राधा ने भिजवाई'
सुनते ही मुरलीधर ने अधरों से पुलक लगायी
विकल हो उठे सम्मुख पाकर
मोरपंख के संग पीताम्बर
आँसू लिए पत्र के अक्षर
पढ़ पाये न कन्हाई
मन उड़ कर पहुँचा वृन्दावन
लहराए दृग में करील-वन
सजल-नयन राधा चलते क्षण
ज्यों फिर पड़ी दिखाई
उलट-पलट पत्री निज कर में
रुद्ध-कंठ वाष्पाकुल स्वर में
कुछ भी कह न सके उत्तर में
फिर फिर मूर्छा आई
'मुरली राधा ने भिजवाई'
सुनते ही मुरलीधर ने अधरों से पुलक लगायी