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पंचम प्रश्न / भाग २ / प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति

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जो तीन मात्रायुक्त ॐ के भू, भुवः स्वः रूप के,
चिन्तक वे पाते एक अक्षर से ही, सुख रवि भूप के।
ज्यों सर्प केंचुल से पृथक, त्यों पाप कर्म से मुक्त हों,
वह साम मंत्रो से लोक रवि, व् ब्रह्म लोक से युक्त हो॥ [ ५ ]

ओंकार की मात्राएँ तीनों 'अ' 'उ' 'म' का पृथक या,
संयुक्त रूप प्रयुक्त जिसने भी मनन चिंतन किया।
दोनों ही विधि से मृत्यु मय चिर अमर व् शाश्वत नहीं,
जो बाह्य अन्तः मध्य हैं, ओंकार मय अमृत वही॥ [ ६ ]

एक मात्रा साधक ऋग, ऋचा के पुण्य से भू लोक का,
द्वि मात्रा साधक यजुः ऋचा के पुण्य से शशि लोक का।
त्रि मात्रा साधक साम गान के, पुण्य से दिवि लोक का,
पर ॐ अवलंबन जिसे, सुख पाते शाश्वत लोक का॥ [ ७ ]