भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / प्रेमघन
Kavita Kosh से
नीको काव कहो मैं तोकों
अस मन आवत चार तमाचे इन गालन पै ठोंकों॥
कथा बार्ता दिल्लगी के प्रचारी।
सबै शास्त्र तत्वज्ञ औ चित्त हारी॥
अचारी अहैं याचते अन्न कन्नः।
स वै पातु यूष्मान पड़क्का प्रपन्ना॥
रामदीन सुतो जातः गौरी नक्षत्र सूचकः।
तस्य पुत्रो अभूत धीमान् ज्वालादत्तेति जारजः॥
देवप्रभाकर प्रखर पण्डित हैं महान।
त्यों पùनाभ हैं पाठक बुद्धिमान्॥
करते सदैव संकर्षण हैं विचार।
ह्वैं हैं परास्त ये दोऊ भट किस प्रकार॥
श्रीराम राम भज लो श्रीराम राम।
विश्वेश्वरार्चन करो उठि सुबह शाम॥
श्रीमन् महेन्द्र को करो झुकि कै प्रणाम।
शिवदत्त निर्मल करो तब और काम॥
माया की उलझन लगी संता पड़ा बेहाल।
सटा छटा पण्डित कै कतहूँ काट न लीन्यो गाल॥