विनयावली / तुलसीदास / पद 101 से 110 तक / पृष्ठ 4
पद 107 से 108 तक
(107)
है नीको मेरो देवता कोसलपति राम।
सुभग सरारूह लोचन, सुठि सुंदर स्याम।1।
सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग।
भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारू निषंग।2।
बलिपूजा चाहत नहीं , चाहत एक प्रीति।
सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति।3।
देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत-जन -बंधु।
गुन गहि, अघ-औगुन हरै, अस करूनासिंधु।4।
देस-काल -पूरन सदा बद बेद पुरान।
सबको प्रभु, सबमें बसै, सबकी गति जान।5।
को करि कोटिक कामना , पूजै बहु देव।
तुलसिदास तेहि सेइये, संकर जेहि सेव।6।
(108)
बीर महा अवराधिये, साधे सिधि होय।
सकल काम पूरन करै, जानै सब कोय।1।
बेगि, बिलंब न कीजिये लीजै उपदेस।
बीज महा मंत्र जपिये सोई, जो जपत महेस।2।
प्रेम-बारि-तरपन भलो, घृत सहज सनेहु।
संसय-समिध, अगिनि-छमा, ममता-बलि देहु।3।
अघ -उचाटि, मन बस करै, मारै मद मार।
आकरषै सुख-संपदा-संतोष-बिचार।4।
जिन्ह यहि भाँति भजन कियो, मिले रघुपति ताहि।
तुलसिदास प्रभुपथ चढ्यौ, जौ लेहु निबाहि।5।