पद 151 से 160 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 1
पद संख्या 151 तथा 152
(151)
जेा पै चेराई रामकी करतो न लाजातो।
तौ तू दाम कुदाम ज्यों कर-कर न बिकातो।
जपत जीह रघुनाथको नाम नहिं अलसातो।
बाजीगर के सूम ज्यों खल खेह न खातेा।
जौ तू मन! मेरे कहे राम-नाम कमातो ।
सीतापति सनमुख सुखी सब ठाँव समातो।
राम सोहाते तोहिं जौ तू सबहिं सोहातो।
काल करम कुल कारनी कोऊ न कोहातो।।
रामनाम अनुरागही जिय जो रतिआतो।
स्वारथ-परमारथ-पथी तोहिं सब पतिआतो।
सेइ साधु सुनि समुझि कै पर-पीर पिरातो ।
जनम कोटिको काँदलो हृद-हृदय थिरातो।
भव-मग अगम अनंत है, बिनु श्रमहि सिरातो।
महिमा उलटे नामकी मुनि कियो किरातो।
अमर -अगम तनु पाइ सो जड़ जाय न जातो।
होतो मंगल -मूल तू, अनुकूल बिधातो।
जो मन प्रीति-प्रतीतिसों राम-नामहिं रातो।
तुलसिदास रामप्रसादसों तिहुँताप नसातो।
(152)
राम भलाई आपनी भल कियो न काको।
जुग जुग जानकीनाथ को जग जागत साको।1।
ब्रह्मादिक बिनती करी कहि दुख बसुधाको।
रबिकुल-कैरव -चंद भेा आनंद-सुधाको।2।
कौसिक गति तुषार ज्यों तकि तेज तियाको।
प्रभु अनहित हित को दियो फल , कोप कृपाको।3।
हर्यो पाप आप जाइकै संताप सिलाको।
सोच-मगन काढ्यो सही साहिब मिथिलाको।4।
रोष-रासि भृगुपति धनी अहमिति ममताको।
चितवन भाजन करि लियो उपसम समताको।5।
मुदित मानि आयुस चले बन मातु-पिताको।
धरम-धुरंधर धीरधुर गुन-सील-जिता को? ।6।
गुह गरीब गतग्याति हू जेहि जिउ न भखा को?
पायेा पावन प्रेम तें सनमान सखाको।7।
सदगति सबरी गीधकी सादर करता को?
सोच-सींव सुग्रीवके संकट -हरता को?।8।
राखि बिभीषनको सकै अस कहा गहा (तेहि काल कहाँ) को?।।
आज बिराजत राज है दसकंठ जहाँ को।9।
बालिस बासी अवधको बूझिये न खाको।
सो पाँवर पहुँचो तहाँ जहँ मुनि -मन थाको।10।
गति न लहै राम-नामसों बिधि सो सिरजा को?
सुमिरत कहत प्रचारि कै बल्लभ गिरिजाको।11।
अकनि अजामिलकी कथा सानंद न भा को?।।
नाम लेत कलिकालहू हरिपुरहिं न गा को?।12।
राम-नाम-महिमा करै काम-भुरूह आको।
साखी बेद पुरान हैं तुलसी-तन ताको।13।