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पद 261 से 270 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5

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पद संख्या 269 तथा 270

(269)

राम कबहुँ प्रिय लागिहौं जैसे नीर मीनको?
सुख जीवन ज्यों जीवको,मनि ज्यों फनिको हित, ज्यों धन लोभ-लीनको।1।

ज्यों सुभाय प्रिय लगति नागरी नागर नवीनको।
त्यों मेरे मन लालसा करिये करूनाकर! पवन प्रेम पीनको।2।

मनसाको दाता कहैं श्रुति प्रभु प्रबीनको।
तुलसिदासको भावतो , बलि जाउँ दयानिधि! दीजै दान दीनको।3।

(270)

कबहुँ कृपा करि रघुबीर! मोहू चितैहो।
भलो-बुरो जन आपनो, जिय जानि दयानिधि! अवगुन अमित बितैहो।1।

जनम जनम हौं मन जित्यो, अब मोहि जितैहो ।
 हौं सनाथ ह्वैहौ सही , तुमहू अनाथपति, जो लघुतहि न भितैहो।2।

बिनय करौं अपभयहु तें , तुम्ह परम हितै हो।
तुलसिदास कासों कहै, तुमही सब मेरे , प्रभु -गुरू , मातु-पितैं हो।3।