भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाताल की रातें / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो हिज्र कि रातें वो विसाल कि रातें
रोज़ की तरह तन्हा-ऐ-हाल कि रातें

डूब जाएँ या फिर, बह जाएँ ये कहीं
ना मिले इस तरह की बवाल की रातें

चाँद जा गिरा है कहीं दरिये में किसी
बेनूर-सी ये, फिजूल कमाल की रातें

हुआ मैं बेकल मिरी उलझनों में यारो
कहाँ से लाऊँ अब, एतिदाल की रातें

हर शय अब खुद ही खेलता है काफ़िर
कहाँ आसमा कहाँ ये पाताल की रातें