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पावस - 2 / प्रेमघन
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सावन समान करि आयो री महान,
मैन मीत बलवान साजे सैन बगुलान की।
धनु इन्द्रधनु बान बुंद बरसान बन्दी,
विरद समान कल कूक मुरवान की॥
प्रेमघन प्रान प्रिय बिन अकुलान लाग्यो,
लखत कृपान सी चलान चपलान की।
धीरज परान हहरान हिय लाग्यो सुन,
धुन धुरवान घोर घुमड़ी घटान की॥