भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पावस - 8 / प्रेमघन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नभ घूमि रही घनघोर घटा,
चहुँ ओरन सों चपला चमकान।
चलै सुभ सावन सीरी समीर,
सुजीगन के गन को दरसान॥
चमू चँहकारत चातक चारु,
कलाप कलापी लगे कहरान।
मनोभव भूपति की वर्षा मिस,
फेरत आज दोहाई जहान॥