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पिता के घर से पीहर की दिशा में / जहीर कुरैशी
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पिता के घर से पीहर की दिशा में
चली नदिया समंदर की दिशा में
पतंगे कट के गिरती हैं धरा पर
मगर, उड़ती हैं अंबर की दिशा में
अँधेरे खुद कभी आते नहीं हैं
हमारे रौशनी —घर की दिशा में
हुए वृक्षों के वे ही पात पीले
जो थे तैयार पतझर की दिशा में
तुम्हारे द्वंद्व बढ़ते जा रहे हैं
किसी पागल बवंडर की दिशा में
हुई बरसात तो झुग्गी ने सोचा
अचानक अपने छप्पर की दिशा में
जो ‘सत्यम’ है, ‘शिवम’ है जिन्दगी में
वो जाएगा ही सुंदर की दिशा में