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पीर को दिल में छिपाना आ गया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पीर को दिल मे छिपाना आ गया
बोझ आँसू का उठाना आ गया
थक गयीं हमको सता कर मुश्किलें
दर्द से रिश्ता निभाना आ गया
कुछ कहूँ पर शब्द मिलते ही नहीं
मौन रह कर मुस्कुराना आ गया
मुश्किलों अब छोड़ भी दो रास्ता
है हमे अब पग बढाना आ गया
साथ हो आओ चलो कुछ दूर तो
कब कहा हमने ठिकाना आ गया
स्वार्थ के बस चंद टुकड़ों के लिये
दूसरों का दिल दुखाना आ गया
जिंदगी दूभर न हो इस के लिये
अब स्वयं को आजमाना आ गया
आँधियाँ हम को डरातीं अब नहीं
पास अपने आशियाना आ गया
क्या हुआ यदि राह लम्बी हो गयी
मंजिलों तक दौड़ जाना आ गया