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पेड़ ! / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
हर आए-गए झोंके पर
तुम अपना हरा-भरा
सिर हिला देते हो
पेड़ !
क्या तुम्हारा अपना
कोई मत नहीं ?
पेड़ !
तुम्हारी छाँह के पले
ये कथावाचक पखेरू
एक दिन तुम्हें—
बीट से ढक देंगे ।