Last modified on 2 जनवरी 2017, at 10:28

प्यार के स्वप्न जितने विफल हो गये / डी. एम. मिश्र

प्यार के स्वप्न जितने विफल हो गये
आग की झील में वो कमल हो गये।

यूँ तो नक्षत्र बन वो गगन के हुए
पर, वही मेरे भी कर्मफल हो गये।

जो ज़हर पच गये वो अमृत हैं बने
फँस गये जो गले में गरल हो गये।

उम्र भर जो रहे दर्द को पूजते
उनके दिल आँसुओं के महल होगये ।

हमको मंजिल नहीं रास्ता चाहिए
प्रश्न ही कितने प्रश्नों के हल हो गये।

हम तो उनके लिए रच रहे थे ऋचा
रूप को शब्द छूकर ग़ज़ल हो गये ।