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आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आईना-दर-आईना
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
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प्रकाशक | नमन प्रकाशन, अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली |
वर्ष | 2016 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 119 |
ISBN | 978..8129..660..5 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / आईना-दर-आईना
- आइने में खरोचें न दो इस क़दर / डी. एम. मिश्र
- भेदे जो बड़े लक्ष्य को वो तीर कहाँ है / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़ल बड़ी कहो मगर सरल ज़बान रहे / डी. एम. मिश्र
- उधर देखा, कभी खु़द की तरफ़ देखा नहीं मैंने / डी. एम. मिश्र
- हँसो या ना हँसो मातम मुझे अच्छा नहीं लगता / डी.एम. मिश्र
- किसी क़ि़ताब में जन्नत का पता देखा है / डी. एम. मिश्र
- सत्ता की कामयाबियों में देखिये उसे / डी. एम. मिश्र
- वो समंदर है तो होने दीजिए / डी. एम. मिश्र
- कितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते है / डी. एम. मिश्र
- पत्थर दिखा के उसको डराया नहीं जाता / डी. एम. मिश्र
- उससे बोलो वो मनमानी बंद करे / डी. एम. मिश्र
- हमें गुमराह करके क्या पता वो कब निकल जाये / डी. एम. मिश्र
- नादाँ है उसे प्यार जताना नहीं आता / डी. एम मिश्र
- बेवजह वो मुस्कराता यह ख़बर अच्छी नही / डी. एम. मिश्र
- अमीरी है तो फिर क्या है हर इक मौसम सुहाना है / डी. एम मिश्र
- रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र
- कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा / डी. एम. मिश्र
- ज़ुल्म और अन्याय सहने के लिए मजबूर था / डी. एम. मिश्र
- गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँ / डी. एम. मिश्र
- गाँव-गाँव हो गया भिखारी / डी. एम. मिश्र
- गाँव में अपने गली है गैल है / डी. एम. मिश्र
- किसी जन्नत से जाकर हुस्न की दौलत उठा लाये / डी. एम. मिश्र
- बनावट की हँसी अधरों पे ज़्यादा कब ठहरती है / डी. एम मिश्र
- राजनीति में आकर गुंडो के भी बेड़ापार हो गये / डी.एम. मिश्र
- इक तरफ़ हो एक नेता इक तरफ़ सौ भेड़िये / डी. एम. मिश्र
- वोटरों के हाथ में मतदान करना रह गया / डी. एम. मिश्र
- हम भारत के भाग्य -विधाता मतदाता चिरकुट आबाद / डी. एम. मिश्र
- करें विश्वास कैसे सब तेरे वादे चुनावी हैं / डी. एम. मिश्र
- मगर हुआ इस बार भी वही हर कोशिश बेकार गई / डी. एम. मिश्र
- मंत्री-अफ़सर दोनों भोग-विलास में डूबे हैं / डी. एम. मिश्र
- सुनता नही फ़रियाद कोर्इ हुक्मरान तक / डी. एम. मिश्र
- पहले अपना चेहरा रख / डी. एम मिश्र
- ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये / डी. एम मिश्र
- हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम मिश्र
- मुहब्बत टूट कर करता हूँ, पर अंधा नहीं बनता / डी. एम. मिश्र
- कभी लौ का इधर जाना, कभी लौ का उधर जाना / डी. एम. मिश्र
- छू लिया मिट्टी तो थोड़ा हाथ मैला हो गया / डी. एम. मिश्र
- प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ / डी. एम. मिश्र
- खिली धूप से सीखा मैने खुले गगन में जीना / डी. एम. मिश्र
- देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार हूँ / डी. एम. मिश्र
- फ़रेब, झूठ का मंज़र कभी नहीं देखा / डी. एम मिश्र
- काँटों की बस्ती फूलों की, खु़शबू से तर है / डी. एम. मिश्र
- गुलाबों की नर्इ क़िस्मों से वो खु़शबू नहीं आती /डी. एम मिश्र
- दूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया / डी. एम. मिश्र
- घनी है रात मगर चल पड़े अकेले हैं / डी. एम मिश्र
- सेाया है इस तरह से कि उठना मुहाल है / डी. एम. मिश्र
- थोडा़-सा मुस्काने में क्यों इतनी देर लगा दी / डी. एम. मिश्र
- आदमी देवता नही होता / डी. एम. मिश्र
- दो घड़ी फूल की कहानी है ये महक, रूप ये जवानी है / डी. एम. मिश्र
- जिनके जज़्बे में जान होती है / डी. एम. मिश्र
- प्यार मुझको भावना तक ले गया / डी. एम. मिश्र
- प्यार के स्वप्न जितने विफल हो गये / डी. एम. मिश्र
- इक घड़ी भी जियो इक सदी की तरह / डी. एम. मिश्र
- घर से बाहर तो आकर हँसा कीजिए / डी. एम. मिश्र
- रह-रह के कौन आ रहा दिल में, दिमाग में / डी. एम. मिश्र
- प्यार समर्पण हार गया, हठ जीत गया / डी. एम. मिश्र
- घुट-घुट हो मरना तो प्यार करे कोई / डी. एम. मिश्र
- अगर वो चैन-व-क़रार था तो उदासियाँ दे गया कहाँ वो / डी. एम. मिश्र
- दिल को बहलाओ मगर पागल बहलता ही नही / डी. एम. मिश्र
- आपकी इक झलक देखकर प्यार की वो नज़र हो गया / डी. एम. मिश्र
- मेरे आँसू कागज़ पर थक जाते चलते-चलते / डी. एम. मिश्र
- बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान / डी. एम. मिश्र
- गुमराह अक्सर हो गया जहाँ रास्ता आसान था / डी. एम. मिश्र
- शहर के ऐशगाहों में टँगे दुख गाँव वालों के / डी. एम. मिश्र
- फिर आ गयी है नयी योजना निमरा करे सवाल / डी. एम. मिश्र
- कहीं इरादा रूपया है तो कहीं तरक़्क़ी है / डी. एम. मिश्र
- यतीमों की तरफ़ से भी मगर पैग़ाम लिख लेना / डी. एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी. एम. मिश्र
- दूर से बातें करो अब वो विधायक है / डी. एम. मिश्र
- देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में / डी. एम. मिश्र
- ज़ुबाँ हो तो वो बोले, बेज़ुबाँ बोले मगर कैसे / डी. एम. मिश्र
- फ़ितरतों से दूर उसकी मुफ़लिसी अच्छी लगी / डी. एम. मिश्र
- कुछ मेरा दीवानापन था, कुछ नसीब का चक्कर था / डी. एम. मिश्र
- जो कट गयी है ज़िंदगी मुड़कर उसे देखा नहीं / डी. एम. मिश्र
- दरिया का हुस्न छोटे से क़तरे में देखिये / डी. एम. मिश्र
- है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र
- अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है / डी. एम. मिश्र
- उससे बातें करें पर वो ज़िंदा तो हो / डी. एम. मिश्र
- वो हमको अच्छा लगता है हम उस पर प्यार लुटाते हैं / डी. एम. मिश्र
- दरपन ने जो चोट सही वो पत्थर क्या जाने / डी. एम. मिश्र
- बेाझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है / डी. एम. मिश्र
- बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है / डी. एम. मिश्र
- बहुत सुना था नाम मगर वो जन्नत जाने कहाँ गयी / डी. एम. मिश्र
- समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन / डी. एम. मिश्र
- किसी की आँख से दुनिया हमें अब देखनी पड़ती / डी. एम. मिश्र
- इन बुज़़ु़र्गों की ज़रूरत अब कहीं पड़ती नहीं / डी. एम. मिश्र
- हवा में है वो अभी आसमान बाक़ी है / डी. एम. मिश्र
- ये बड़े लोग हैं किरदार की बातें करते / डी. एम. मिश्र
- उनकी उँगली में जो होता तो नगीना होता / डी. एम. मिश्र
- दुकाँ छोटी हो लेकिन दोस्तो बैनर बड़ा रखना / डी. एम. मिश्र
- मेरा आँगन मेरे घर में रहने को तैयार नहीं / डी. एम. मिश्र
- नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र
- जहर तुमने अकेले पी लिया ऐसा नहीं होता / डी. एम. मिश्र
- हाले दिल क्या सुनाऊँ तुझे वक़्त गुज़रा नहीं भूलता / डी. एम. मिश्र
- अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता / डी. एम. मिश्र
- इतने क़रीब रह के मगर भूल गये हैं / डी. एम. मिश्र
- झोंपड़ी में हों या हवेली में / डी. एम. मिश्र
- कोई बंधन हो छूट जाता है / डी. एम. मिश्र
- पलकों के शामियाने में ख़्वाब पल रहे थे / डी. एम. मिश्र
- तुमने यार बजा फ़रमाया ग़ज़ल तो एक इशारा है / डी. एम. मिश्र
- बडे आराम से वो क़त्ल करके घूमता है / डी. एम. मिश्र
- अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़ल ऐसी कहो जिससे कि मिट्टी की महक आये / डी. एम. मिश्र
- जिदगी में यूँ तो लाखों ग़म मिले / डी. एम. मिश्र
- समय बदलते अपने भी सब बदल गये / डी. एम. मिश्र
- मिट्टी का जिस्म है तो ये मिट्टी में मिलेगा / डी. एम. मिश्र
- अश्कों को मैंने पी के भी दिल को बड़ा किया / डी. एम. मिश्र
- मौत का मंज़र हमारे सामने था / डी. एम. मिश्र
- लंबी है ये सियाहरात जानता हूँ मैं / डी. एम. मिश्र