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ज़ुल्म और अन्याय सहने के लिए मजबूर था / डी. एम. मिश्र
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ज़ुल्म और अन्याय सहने के लिए मजबूर था
कर भी क्या सकता था वो बाहैसियत मज़दूर था।
जब हुआ था हादसा सब हाथ बाँधे थे खड़े
ग़़म किसे था, ग़़म का लेकिन ढोंग बदस्तूर था।
छै महीना भी न बीता हो गयी टीबी उसे
गाँव से आया हुआ था हौसला भरपूर था।
चुक गयीं साँसे जब उसकी आ गये सब मददगार
एक भी इन्साँ न था मजमा वहाँ पे ज़रूर था।
हैसियत भी थी बड़ी और धन भी था उसके अकूत
वो किसी को क्या समझता मद में अपने चूर था।
चश्मदीद गवाह था वो इसलिए मारा गया
साथ वो सच के खड़ा था बस यही तो कुसूर था ।