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घर से बाहर तो आकर हँसा कीजिए / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
घर से बाहर तो आकर हँसा कीजिए
दर्द सहकर सभी का भला कीजिए।
इस जहाँ का चलन भी निभा दीजिए
और अपने भी दिल का कहा कीजिए।
खोज में आप जिसकी परेशान हैं
पास में ही न हो ये पता कीजिए।
एक भी आप दुश्मन नहीं पायेगे
बस ,ज़रा और दिल को बड़ा कीजिए।
प्यार जैसा मज़ा पा लिया है अगर
मुस्कराकर सितम भी सहा कीजिए।
मैं किसी के भी दुख में खड़ा हो सकूँ
आप ख़्यालों में मेरे रहा कीजिए।