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समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन / डी. एम. मिश्र

समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन
हवा का रूख़ बदलना चाहता हूँ क्या करूँ लेकिन।

मुझे मालूम है जाना मुझे है किस दिशा में,पर
मैं कश्ती की दशा भी देखता हूँ क्या करूँ लेकिन।

जवानी थी कमाता था तो देता था तुम्हें बेटा
बुढ़ापा आ गया तो माँगता हूँ क्या करूँ लेकिन।

मुझे मालूम है किसने लगायी आग पानी में
धुआँ जो उठ रहा है देखता हूँ क्या करूँ लेकिन।

हुए जो ज़ुल्म मज़लूमों पे उसको जानता हूँ मै
कहाँ खामोश रहना चाहता हूँ क्या करूँ लेकिन।

जिधर भी देखता हूँ रास्ते सब बंद पाता हूँ
तेरे कूचे से जाना चाहता हूँ क्या करूँ लेकिन।