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गाँव-गाँव हो गया भिखारी / डी. एम. मिश्र
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गाँव - गाँव हो गया भिखारी
ये कैसी माया सरकारी।
विधवा बनकर पेन्शन लेती
देखा एक सुहागन नारी।
वोट के बदले नोट मिलेगा
खुला ख़ज़ाना है सरकारी।
स्वाइन -फ्लू आ गया यहाँ भी
सूअर बाँट रहे बीमारी।
हाड़ के पीछे कुत्ते लड़ते
बीच सड़क पर मारा - मारी।
महाकुम्भ के इस मेले में
बुढ़िया गिरी पिसी बेचारी।
मोदी हों या राहुल भैया
देश से ज़्यादा कुर्सी प्यारी।
कुछ कवि जनता का दुख गाते
कुछ गाते कविता दरबारी ।