भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया
देखते ही देखते क़िस्मत हमारी हो गया।

कब मिला , कैसे मिला कुछ भी नहीं मालूम पर
चार दिन में वो हमारी जिंदगी भी हो गया।

अजनबी कोई नहीं रिश्ते बनाकर देखिये
कल तलक जो ग़ैर था कितना ज़रूरी हो गया।

अब उसी के नाम से होती शुरू शामोसहर
अब वो ताक़त और कमज़ोरी हमारी हो गया ।

इस मुहब्बत के लिए इतना कहूँगा दोस्तो
फूल गुलशन में खिले मौसम गुलाबी हो गया।